Badri Cow - Uttarakhand's Indegenous Health Wealth Happiness बद्री पहाड़ी गाय
"वंदे धेनु मातरम्"
The Red Hill Cattle or Badri is a dual-purpose ‘desi’ cattle breed – reared for milking and draught purposes. The petite Badri cow is found only in hill districts and was earlier known as the ‘pahadi’ cow. These cattle are well adapted to the hilly terrain and the climatic conditions of Uttarakhand. This sturdy and disease-resistant breed is found in hilly regions of Uttarakhand. The Badri cow is considered auspicious and is also used for religious purposes.
Disease resistance is a very important characteristic of this breed as it rarely gets any disease. It remains healthy throughout life, as these cattle are fed on pure vegetation and live in natural and fresh, pollution-free condition of the hilly areas of Uttarakhand.
Badri breed is the first certified cattle breed of Uttarakhand. In its endeavour to promote cattle-rearing of the Badri breed, the government has started initiatives by improving marketing facilities, providing nutritious feed and fodder, and providing employment opportunities to the locals of the region.
According to a research study conducted by the Uttarakhand State Council for Science & Technology & IIT Roorkee, the milk of the Badri cow contains almost 90% A2 beta-casein proteins – and is one of the highest in any indigenous varieties.
The constitution of an organized market for the Badri cattle products, and the promotion of organic farming with appropriate incentives are needed for promoting Badri cattle-keeping among the farmers of Uttarakhand.
http://panchgavvya.blogspot.com/2013/08/why-save-holy-cows-benefits-of-panch.htmlCharacteristics:
According to the last count, the estimated population of this breed in the state of Uttarakhand is around 16 lakh. Efforts are being made for conserving this breed. Our Government has started many schemes, such as the Rashtriya Gokul Mission, National Kamdhenu Breeding Centre, Central Herd Registration, National Dairy Plane, etc. A cattle breeding centre for preservation of this native breed was opened in Champawat’s Nariyal village in 2012, and it now houses about 150 cows.
Badri breed is listed under accession no. INDIA_CATTLE_2400_BADRI_03040 by the ICAR- National Bureau of Animal Genetic Resources (NBAGR) which is a premier institute of the country. NBAGR is dedicated to work with its directive of identification, evaluation, characterization, conservation and utilization of livestock and poultry genetic resources of the country.
दुनिया में सबसे अच्छा उत्तराखंड की बद्री गाय का दूध
अशोक केडियाल, jagran Hindi 23 Jul 2017
दुनिया में सबसे अधिक गुणकारी एवं निरोग दूध बद्री गाय (पहाड़ी गाय) का है। यूकॉस्ट (उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद) व आइआइटी (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान) रुड़की के वैज्ञानिकों के बद्री गाय के दूध पर किए गए शोध से यह तथ्य सामने आया।
वेल्यू एडिशन टू दि हिल-केटल ऑफ उत्तराखंड यूसिंग बॉयोटेक्नोलॉजिकल इन्वेस्टिगेशन प्रोजेक्ट के तहत किए गए इस शोध में पता चला कि पहाड़ी गाय के दूध में 90 फीसद ए-2 जीनोटाइप बीटा केसीन पाया जाता है, जो डायबिटीज और हृदय रोगों को रोकने में कारगर है साथ मनुष्य के लिए हर दृष्टि से लाभदायी है। जबकि, विश्वभर में हुए शोधों के मुताबिक जर्सी, होल्सटिन समेत अन्य नस्ल की गायों के दूध में पाया जाने वाला ए-1 बीटी केसीन जीनोटाइप डायबिटीज, हृदय रोग व अन्य मानसिक रोगों का कारक है।
बद्री गाय उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में पाली जाती हैं। पहाड़ी नस्ल की इस गाय को जून 2016 में एनबीएजीआर (नेशनल ब्यूरो ऑफ एनिमल जेनेटिक्स एंड रिसर्च) ने नामांकन प्रमाण पत्र जारी किया। वैज्ञानिकों के मुताबिक बद्री गाय एक वक्त में एक से तीन किलो तक दूध देती है। इसका दूध गाढ़ा व पीला होता है।
क्या है बीटा जीनोटाइप केसीन
दुधारू पशुओं में 12 प्रकार के बीटा केसीन पाए जाते हैं, जो उनकी जेनेटिक भिन्नता प्रदर्शित करते हैं। इनमें सिर्फ ए-1 व ए-2 बीटा केसीन ही प्रमुख हैं। जबकि ए-3 से ए-12 तक बीटा केसीन दूध में बेहद कम मात्रा में पाए जाते हैं। दूध में प्रोटीन का मुख्य घटक केसीन ही होता है।
पहाड़ों की अर्थव्यवस्था से जुड़ी है बद्री गाय
पहाड़ी गाय उत्तराखंड के गांवों की कृषि एवं आर्थिकी से सीधे जुड़ी है। इसका मुख्य आहार हरी एवं सूखी घास है। जबकि, जर्सी, होल्सटिन समेत अन्य नस्ल की गाय दाना, खल आदि पर निर्भर हैं। हालांकि, दूध का मूल्य सभी गायों का एक समान है। उत्तराखंड सरकार का पशुपालन विभाग बद्री गाय के संरक्षण एवं विकास पर विशेष ध्यान दे रही है।
दूध में 90 फीसद ए-2 जीनोटाइप बीटा केसीन पाया गया
यूकॉस्ट के महानिदेशक डॉ. राजेंद्र डोभाल का कहना है कि परियोजना के अंतर्गत लिए गए दूध के नमूनों का परीक्षण करने पर इसमें 90 फीसद ए-2 जीनोटाइप बीटा केसीन पाया गया। यह स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहद लाभकारी है। विश्व में यूरोपीय देशों के अलावा अमेरिका, ब्राजील व आस्ट्रेलिया में ए-1 जीनोटाइप की समस्या आम है।
4000 रुपये किलो बिक रहा बद्री गाय के दूध से तैयार घी - अमर उजाला
आमतौर पर बाजार में घी 400 से 500 रुपये किलो की दर से बिकता है लेकिन पहाड़ी नस्ल की बद्री गाय का घी चार हजार रुपये किलो ऑनलाइन बिक रहा है।
पहाड़ी नस्ल की गाय के संरक्षण के बनाए गए नरियालगांव पशु प्रजनन केंद्र में बद्री गाय को बचाने की मुहिम रंग ला रही है। हेथा कंपनी बद्री गाय के दूध को 41 रुपये प्रति लीटर की दर से खरीद कर इसका घी बनवा रही है जो ऑनलाइन चार हजार रुपये प्रति किलो की दर से बिक रहा है। वर्तमान में यहां 300 पशुधन हैं जिसमें 140 बद्री गाय और उनके बछड़े हैं।
पशु प्रजनन केंद्र में प्रतिदिन बद्री गायों से 125 लीटर दूध प्राप्त होता है। पूर्व में यह दूध दुग्ध संघ को 25 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से दिया जाता था। बाद में पशु प्रजनन केंद्र ने बद्री गाय के दूध की लैब में सैंपलिंग कराई। लैब में बद्री गाय के दूध में ए-2 प्रोटीन के अलावा अन्य पोषक तत्वों की उपलब्धता पाई गई।
इसकी गुणवत्ता के आधार पर पशुपालन विभाग ने दूध को खरीदने के लिए निविदा आमंत्रित की जिसके बाद पशुपालन विभाग ने दूध का पेटेंट कराया। निविदा के बाद गाजियाबाद की हेथा कंपनी ने दूध के 41 रुपये प्रति लीटर की दर से दाम दिए। नरियालगांव की स्थानीय महिलाएं हेथा कंपनी के लिए इस दूध से पारंपरिक तरीके से घी तैयार कर दे रही हैं। इससे उनको रोजगार भी मिल रहा है।
यह घी हेथा हिमालयन पहाड़ी बद्री गाय बिलोना घी के नाम से ऑनलाइन बिक रहा है। बद्री गाय के कम दूध देने के कारण पहाड़ में लोगों ने इन्हें पालना छोड़ दिया था। पशुपालन विभाग की इस पहल से अब लोग फिर से बद्री गाय पालने की ओर अग्रसर हो रहे हैं।
गाजियाबाद की हेथा कंपनी बद्री गाय के दूध से जैविक घी तैयार कर रही है जो अमेजन सहित कई अन्य शॉपिंग कंपनियों में ऑनलाइन बिक रहा है। आधा किलोग्राम की कीमत 2500 रुपये है। डॉ. बीएस जंगपांगी, मुख्य पशु चिकित्साधिकारी, चंपावत।
दस महिलाओं को मिला रोजगार
चंपावत। हेथा कंपनी की ओर से बद्री गाय के दूध से घी तैयार करने के लिए 10 स्थानीय महिलाओं को रोजगार से जोड़ा गया है। नरियालगांव में लगाए गए प्लांट में घी तैयार करने के कार्य में लगी महिलाओं को दैनिक पारिश्रमिक दिया जाता है। कंपनी की ओर से प्रत्येक महिला को 7000 रुपये प्रतिमाह दिए जाते हैं।
नरियालगांव पशु प्रजनन केंद्र में मौजूद बद्री गायें।
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